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Friday, 8 June 2012

तारानगर में हिंसा का तांडव पर शासन-प्रशासन ने हिन्दुओं की सुध तक नहीं ली

तारानगर में हिंसा का तांडव पर शासन-प्रशासन ने हिन्दुओं की सुध तक नहीं ली

पश्चिम बंगाल के हालात सुश्री ममता बनर्जी के नियंत्रण में नहीं हैं। 

माओवादियों और मुस्लिमों के प्रचण्ड समर्थन से वामपंथियों को सत्ता से उखाड़कर मुख्यमंत्री बनीं सुश्री ममता बनर्जी के लिए यही दोनों वर्ग सिरदर्द का कारण बन गए हैं। एक तरफ माओवादी हथियार नहीं डाल रहे हैं तो दूसरी तरफ कट्टर मुस्लिम भी उग्र हो रहे हैं।

तारानगर में गत 14 मई को लगभग 2000 उग्र भीड़ ने हिंसा का जो तांडव रचा उससे स्पष्ट हो रहा है कि उन्हें किसी का भय नहीं है और प्रशासन भी उनके विरुद्ध असहाय है।

दक्षिण 24 परगना जिले के जॉयनगर थानान्तर्गत तारानगर गांव में गत 14 मई की सुबह 11 बजे से लेकर देर रात तक इन उपद्रवियों ने हिन्दुओं को बंधक बनाकर रखा, घरों में लूटपाट की, महिलाओं की अस्मत लूटी और 53 घरों को आग के हवाले कर दिया।

आतंकित शेष सभी हिन्दू परिवार अपना घर-बार छोड़कर भाग गए और अब तक वापस नहीं लौटे हैं। पर इतनी भीषण और बर्बर घटना के बावजूद मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमण्डलीय सदस्य या सांसद, विधायक तो दूर पंचायत अध्यक्ष, पंचायत प्रतिनिधि या निचले स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों तक ने गांव जाकर पीड़ितों के हालात जानने तक की कोशिश नहीं की, राहत और सहायता पहुंचाना तो बहुत दूर की बात है।

यह सारा घटनाक्रम शौकत खान नामक एक व्यक्ति की उसी दिन सुबह हुई राजनीतिक हत्या की प्रतिक्रियास्वरूप घटा। माना जा रहा है कि 10 साल पहले हुई भाकपा नेता बिमल हलधर की हत्या का बदला लेने के लिए शौकत खान की हत्या की गई। पर इस हत्या से उपजे आक्रोश का निशाना बने तारानगर के निर्दोष और निरपराध हिन्दू।

उग्र गुण्डों ने लूट, आगजनी और हिंसा के दौरान पुलिस के सामने ही दो महिलाओं का अपहरण कर लिया। बाद में ये महिलाएं शौकत खान के घर की छत से बरामद की गईं। चेन से इनके हाथ-पैर बंधे थे, मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था, पर सामूहिक बलात्कार का शिकार इन महिलाओं को पुलिस अस्पताल तक नहीं ले गई। अब ये महिलाएं कहां हैं, किसी को पता नहीं।

तारानगर गांव की स्थिति इतनी भयावह है कि अधिकांश लोग(186 Hindus (young and old) from 56 families) घर छोड़कर भाग गए हैं, कहां हैं पता नहीं, गांव वापस लौटेंगे या नहीं, यह भी पता नहीं। जो कुछेक लोग बचे हैं वे सामूहिक रूप से खाना बनाते हैं और खुले में सोने को मजबूर हैं। इन लोगों के लिए चावल या थोड़ा-बहुत राशन पास के हिन्दू समाज ने ही पहुंचाया। पर 15 दिन बीत जाने के बाद तक शासन-प्रशासन ने उनकी सुध तक नहीं ली, क्योंकि- वे हिन्दू जो हैं!!